
नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने गुरुवार को राजधानी में आयोजित एक समारोह के दौरान ‘स्वच्छ सर्वेक्षण पुरस्कार’ प्रदान किए। यह कार्यक्रम आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा आयोजित किया गया था।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपराओं में स्वच्छता को हमेशा से विशेष स्थान मिला है। उन्होंने बताया कि हमारे पूर्वजों की यह आदत रही है कि न सिर्फ अपने घरों को, बल्कि पूजा स्थलों और आसपास के वातावरण को भी साफ रखा जाए।
महात्मा गांधी को उद्धृत करते हुए राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा, “गांधी जी मानते थे कि स्वच्छता, ईश्वर की भक्ति के बाद सबसे महत्वपूर्ण कार्य है।” वे इसे न केवल धार्मिक या आध्यात्मिक जिम्मेदारी मानते थे, बल्कि नागरिक कर्तव्य का भी हिस्सा मानते थे।
राष्ट्रपति ने यह भी साझा किया कि उन्होंने जनसेवा की अपनी यात्रा की शुरुआत भी स्वच्छता अभियानों से ही की थी।
अधिसूचित क्षेत्र परिषद की उपाध्यक्ष रहते हुए द्रौपदी मुर्मु रोज़ाना अलग-अलग वार्डों का दौरा करती थीं और स्वच्छता से जुड़े कार्यों पर खुद नज़र रखती थीं।
वहीं, समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि स्वच्छ सर्वेक्षण हमारे शहरों द्वारा स्वच्छता के प्रयासों का आकलन और प्रोत्साहन करने में एक सफल प्रयोग साबित हुआ है। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा वर्ष 2024 के लिए दुनिया का सबसे बड़ा स्वच्छता सर्वेक्षण आयोजित किया गया, जिसमें विभिन्न हितधारकों, राज्य सरकारों, शहरी निकायों और लगभग 14 करोड़ नागरिकों ने भाग लिया।
पारंपरिक जीवनशैली में स्वच्छता की झलक
उन्होंने कहा कि न्यूनतम संसाधनों का उपयोग करके और उन्हें उसी उद्देश्य या अन्य उद्देश्य के लिए पुनः उपयोग करके अपशिष्ट को कम करना हमेशा हमारी जीवनशैली का हिस्सा रहा है। चक्रीय अर्थव्यवस्था के मूल सिद्धांत और ‘कम उपयोग करें- पुनः उपयोग करें’ पुनर्चक्रण की प्रणालियां हमारी प्राचीन जीवनशैली के आधुनिक और व्यापक रूप हैं। उदाहरण के लिए, आदिवासी समुदायों की पारंपरिक जीवनशैली सरल है। वे कम संसाधनों का उपयोग करते हैं और मौसम तथा पर्यावरण के साथ तालमेल बिठाते हैं और अन्य समुदाय के सदस्यों के साथ साझेदारी में रहते हैं। वे प्राकृतिक संसाधनों को बर्बाद नहीं करते हैं। इस तरह के व्यवहार और परंपराओं को अपनाकर चक्रीयता की आधुनिक प्रणालियों को मज़बूत किया जा सकता है।
स्रोत पर कचरा पृथक्करण है पहली सीढ़ी
राष्ट्रपति मुर्मु ने कचरा प्रबंधन के पहले और सबसे ज़रूरी कदम के रूप में “स्रोत पर पृथक्करण” को बताया। उन्होंने कहा कि हर नागरिक और हर परिवार को इस ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। उन्होंने ‘शून्य-अपशिष्ट कॉलोनियों’ की प्रशंसा की, जो अन्य लोगों के लिए उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं।
स्कूलों में स्वच्छता शिक्षा की पहल
राष्ट्रपति ने स्कूलों में चल रही आकलन पहल की सराहना की, जिसका उद्देश्य है कि छात्र स्वच्छता को जीवन मूल्य के रूप में अपनाएं। उन्होंने कहा कि इससे दूरगामी और सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे।
प्लास्टिक और ई-कचरे की चुनौती
उन्होंने आगे कहा कि प्लास्टिक और इलेक्ट्रॉनिक कचरे को नियंत्रित करना और उनसे उत्पन्न प्रदूषण को रोकना एक बड़ी चुनौती है। उचित प्रयासों से हम देश के प्लास्टिक उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी ला सकते हैं। केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 में एकल-उपयोग प्लास्टिक युक्त कुछ वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाया। उसी वर्ष, सरकार ने प्लास्टिक पैकेजिंग के लिए विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व हेतु दिशा-निर्देश जारी किए। सभी हितधारकों – उत्पादकों, ब्रांड मालिकों और आयातकों – की यह ज़िम्मेदारी है कि वे इन दिशानिर्देशों का पूरी तरह पालन करें।
विकसित भारत, स्वच्छ भारत
राष्ट्रपति ने कहा कि स्वच्छता से जुड़े प्रयासों के आर्थिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक पहलू हैं। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि सभी नागरिक स्वच्छ भारत मिशन में पूरी लगन से हिस्सा लेंगे। राष्ट्रपति ने कहा कि ठोस और सुविचारित संकल्पों के साथ वर्ष 2047 तक विकसित भारत दुनिया के सबसे स्वच्छ देशों में से एक होगा।