भारत में पहली बार में जर्मन तकनीक से राजमार्ग बनेंगे

केंद्र सरकार जर्मन तकनीक से भारत में सस्ते-टिकाऊ-फिसलनमुक्त राष्ट्रीय राजमार्ग बनाएगी. इस तकनीक में राष्ट्रीय राजमार्गों का डामरीकरण परंपरागत तारकोल मिश्रण के बजाए जर्मन तकनीक स्टोन मैट्रिक्स एस्फॉल्ट (एसएमए) से किया जाएगा.
आधुनिक तकनीक वाले एसएमए सामग्री में 45 डिग्री के उच्च तापमान को सहने से लेकर बारिश की नमी प्रतिरोधी गुण होने के कारण राजमार्गो में गड्ढे नहीं होंगे. यह तारकोल की अपेक्षाकृत काफी सस्ता, मजबूत और टिकाऊ होने के कारण राजमार्गों की आयु तीन गुना तक बढ़ जाएगी. सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने 13 फरवरी को सभी केंद्रीय तथा राज्य एजेंसियों को राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण में एसएमएस सामग्री के इस्तेमाल करने के निर्देश जारी कर दिए हैं. मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हर साल राष्ट्रीय राजमार्गों पर यातायात का दबाव बढ़ता जा रहा है. इसके साथ ही विशेष डिजाइन के टायर वाले व्यावसायिक वाहन भारी एक्सल लोड (भारी भार) लेकर राजमार्गों पर चल रहे हैं. इससे राजमार्गों पर दबाव होने से टूट-फूट होती है और कम समय में मरम्मत कार्य करना पड़ता है. अधिकारी ने बताया कि परंपरागत तारकोल मिश्रण से डामरीकृत होने वाले राजमार्ग इस दबाव को सहने लायक नहीं होते हैं. इसलिए यह फैसला किया गया है कि राजमार्गों की परत बिछाने के लिए जर्मन तकनीक स्टोन मैट्रिक्स एस्फाल्ट का प्रयोग किया जाएगा. विश्व के कई शोधों में साबित हुआ है कि एमएसए कंक्रीट की अपेक्षाकृत सस्ता व अत्यधिक टिकाऊ है. तारकोल से नवनिर्मित राजमार्ग की चार से पांच साल में मरम्मत करनी पड़ती है, जबकि एमएसए निर्मित राजमार्ग 10-15 वर्ष तक चलते हैं. विशेष डिजाइन के राजमार्ग बनाने पर इनकी आयु 50 साल तक हो सकती है.