
उच्चतम न्यायालय ने 2002 के गोधरा ट्रेन अग्निकांड के दोषियों की जमानत याचिका खारिज कर दी. दोषियों को निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने इसे उम्रकैद में बदल दिया था.
जहां 11 दोषियों को मौत की सजा सुनाई गई थी, वहीं 20 अन्य को ट्रायल कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी. उच्च न्यायालय ने मौत की सजा कम करते हुए मामले में 31 दोषसिद्धि को बरकरार रखा था और उनमें से कुछ ने अपनी दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ अपील के निस्तारण तक जमानत के लिए शीर्ष अदालत का रुख किया था.
21 अप्रैल को होगी सुनवाई
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि मृत्युदंड को उम्रकैद में बदलने के खिलाफ राज्य सरकार की अपील के अलावा दोषियों की जमानत याचिकाओं से कुशलतापूर्वक निपटने के लिए भेद करने की आवश्यकता थी. अभी वह उन लोगों की जमानत याचिकाओं को खारिज कर रहा है जिन्हें निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी. पीठ अब दोषियों की जमानत की अन्य याचिकाओं पर 21 अप्रैल को सुनवाई करेगी.
गुजरात सरकार ने दिया ये तर्क
गुजरात सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई की शुरुआत में कहा कि हम उन दोषियों को मौत की सजा देने के लिए गंभीरता से दबाव डालेंगे, जिनकी मौत की सजा को हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास में बदल दिया. यह दुर्लभ से दुर्लभ मामला है जिसमें महिलाओं और बच्चों समेत 59 लोग जिंदा जल गए. हर जगह यही कहा गया कि बोगी (कोच) पर बाहर से ताला लगा हुआ था. यह केवल पथराव का सामान्य मामला नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने 24 मार्च को कहा था कि वह मामले की सुनवाई की अगली तारीख पर दोषियों की जमानत याचिकाओं का निस्तारण करेगी. 20 फरवरी को प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि वह उन 11 दोषियों के लिए मौत की सजा की मांग करेगी जिनकी सजा को गुजरात हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास में बदल दिया था.
27 फरवरी, 2002 को गुजरात के गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में आग लगने से 59 लोगों की मौत हो गई थी, जिससे राज्य में दंगे भड़क उठे थे. मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और जे. बी. पारदीवाला की पीठ ने कहा कि मौत की सजा कम करने के खिलाफ राज्य सरकार की अपील के अलावा, दोषियों की जमानत याचिकाओं के बैच के कुशलता से निपटने के लिए एक अंतर पैदा करने की आवश्यकता थी.
पीठ ने कहा कि फिलहाल वह उन लोगों की जमानत याचिकाओं को खारिज कर रही है, जिन्हें निचली अदालत ने सजा कम करने से पहले मौत की सजा दी थी.