कैसे हो सज़ा-ए-मौत? केंद्र बनाएगा कमिटी

नई दिल्ली केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि मौत की सजा के लिए कम दर्दनाक तरीका खोजने के लिए एक्सपर्ट कमिटी गठित करने पर विचार कर रही है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि वह इस मामले में जुलाई में सुनवाई करेंगे. केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कहा कि सरकार एक्सपर्ट कमिटी बनाने के उनके सुझाव पर विचार कर रही है. इस मुद्दे पर विमर्श चल रहा है.
कमिटी में कौन-कौन से नाम होंगे इससे जुड़े विषय पर बातचीत चल रही है. इससे पहले सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया था कि वो इस मामले को लेकर एक एक्सपर्ट कमिटी बनाएगा. 21 मार्च को अदालत ने कहा था कि वह एक्सपर्ट कमिटी बनाने पर विचार कर सकता है. कमिटी देखेगी कि क्या सजा-ए-मौत के मामले में फांसी की सजा तुलनात्मक तौर पर कम दर्दनाक है?
केंद्र से मांगा था डेटा:
सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा के अमल के तरीके पर केंद्र से डेटा उपलब्ध कराने को कहा था. 9 जनवरी 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह बताए कि दुनिया के दूसरे देशों में किस तरह से फांसी की सजा पर अमल किया जाता है. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली वेंच ने सुनवाई के दौरान ये साफ किया था कि वह इस बात को तय नहीं करने जा रहे हैं कि भारत में मौत की सजा पाए मुजरिमों को किस तरह से सजा दी जाए. हम ये नहीं कह रहे हैं कि किस तरह से सजा पर अमल हो. लेकिन हमें बताया जाए कि दुनियां के दूसरे देशों में किस तरह से सजा पर अमल होता है.
याचिका में मांग, कम दर्दनाक तरीके से दिया जाए मृत्युदंड
सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर मौत की सजा पाने वाले मुजरिमों को फांसी पर लटकाने के मौजूदा कानूनी प्रावधान में बदलाव के लिए गुहार लगाई गई है. इसके बजाय कम दर्दनाक तरीके जैसे कि जानलेवा इंजेक्शन लगाने, गोली मारने, करंट लगाने या गैस चैंबर का इस्तेमाल करने का अनुरोध किया, ताकि मौत कम से कम कष्टदायक हो. पिछली सुनवाई के दौरान 6 अक्टूबर 2017 को केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा था. याचिकाकर्ता ने कहा है कि लॉ कमिशन ने 187 रिपोर्ट में मौत की सजा पाए मुजरिमों को फांसी पर लटकाने के वर्तमान तरीके के खिलाफ सिफारिश की थी. लॉ कमिशन की 187 रिपोर्ट को याचिका का आधार बनाते हुए फांसी पर लटकाए जाने की मौजूदा प्रक्रिया में बदलाव की गुहार लगाई गई है. सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल करने वाले वकील रिषि मल्होत्रा की ओर से कहा गया है कि संविधान के आर्टिकल-21 के तहत जीवन जीने का अधिकार है और इसी अधिकार में मौत की सजा की स्थिति में सम्मानजनक तरीके से अमल का अधिकार भी शामिल है.