
सरकारी और निजी क्षेत्र सहित भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए 2022 एक घटनापूर्ण वर्ष था. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Isro)के शीर्ष अधिकारी ने कहा कि इसरो और न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) ने उपग्रह प्रक्षेपण बाजार में 1 हजार करोड़ रुपये से अधिक के ऑर्डर के साथ एक भारी रॉकेट (Rocket) और कुछ उपग्रहों को लॉन्च किया. इसरो के अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग के सचिव एस. सोमनाथ ने आईएएनएस को बताया कि समीक्षाधीन वर्ष के दौरान निजी अंतरिक्ष स्टार्टअप ने भी अपने उपग्रह और रॉकेट लॉन्च किए.
हालांकि सरकार के स्वामित्व वाले अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए वर्ष 2022 की बड़ी खबर यूके स्थित वनवेब के 36 उपग्रहों का इसरो के एलएमवी-3 राकेट के साथ सफल प्रक्षेपण है, जिसे पहले जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-एमके-3 के रूप में जाना जाता था.
सोमनाथ ने कहा, अगले साल की शुरुआत में इसी तरह का एक और प्रक्षेपण निर्धारित है. हमें वनवेब की अगली पीढ़ी के उपग्रहों के लिए अनुबंध मिल सकते हैं. लॉन्च के लिए एलएमवी-3 की उपलब्धता के बारे में पूछने पर सोमनाथ ने कहा, हमें इसके उत्पादन में प्रति वर्ष पांच या छह तक की वृद्धि पर विचार करना होगा. उन्होंने कहा कि उत्पादन बढ़ाने के लिए निवेश की जरूरत है. हम सरकार से धन की मांग नहीं कर सकते, क्योंकि वाणिज्यिक कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए वाणिज्यिक धन की आवश्यकता है.
सोमनाथ ने कहा, भारी रॉकेट के उत्पादन में कुछ वर्षों का समय लगता है. फंडिंग विकल्पों का अध्ययन किया जा रहा है. एनएसआईएल ग्राहकों से अग्रिम भुगतान के लिए भी कहा जा सकता है, ताकि रॉकेट का उत्पादन शुरू किया जा सके. इसरो प्रमुख ने कहा कि विश्व स्तर पर भी अंतरिक्ष क्षेत्र का व्यवसाय मॉडल बदल रहा है. सरकारें अपना हाथ खींच रही हैं और निजी क्षेत्र को पूर्व मॉडल के रूप में अनुमति देना लंबे समय तक टिकाऊ नहीं है.
प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर उन्होंने कहा, इसरो ने भारतीय मिनी सैटेलाइट बस के बारे में अपनी जानकारी छह कंपनियों के साथ साझा की. इसी प्रकार लगभग 10 कंपनियों को लिथियम-आयन बैटरी की तकनीक बताई. अनुसंधान एवं विकास के मामले में सोमनाथ ने कहा कि इसरो ने गतिविधियों में तेजी लाई है और वह कई नई तकनीकों पर काम कर रहा है, जिसके नतीजे अगले साल सामने आएंगे.
अंतरिक्ष एजेंसी इसरो एडिटिव मैन्युफैक्च रिंग (3डी प्रिंटिंग) पर शोध कर रही है. विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) में काफी काम हुआ है और अंतरिक्ष एजेंसी इस क्षेत्र में और पेशेवर तैयार कर सकती है. सोमनाथ ने कहा, हम चुंबकीय सामग्री, विशेष चश्मा, उच्च तापमान सहिष्णु सामग्री के विकास लिए काम कर रहे हैं, जो पुन: प्रयोज्य रॉकेट में उपयोग की जाएगी.
भारत के मानव अंतरिक्ष मिशन गगनयान के लिए इसरो ने पर्यावरणीय जीवन समर्थन प्रणाली विकसित करने का निर्णय लिया है. सॉफ्टवेयर संचालित उपग्रह के बारे में सोमनाथ ने कहा कि यह अनुसंधान एवं विकास मोड में है और इसे तैयार होने में दो/तीन साल लग सकते हैं. सोमनाथ ने कहा, इसरो अपने उपग्रहों के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स विकसित करने पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है और व्यावसायिक रूप से उपलब्ध इलेक्ट्रॉनिक्स का अपस्केलिंग के साथ उपयोग कर रहा है, इससे उत्पादन लागत कम होगी. उन्होंने कहा कि इसरो ने परमाणु घड़ी भी विकसित की है, जिसे नेविगेशन उपग्रहों में लगाया जाएगा. पहली घड़ी फिट होने के लिए तैयार है.
एनएवीआईसी तारामंडल पर उन्होंने कहा कि भारत को तारामंडल को पूरा करने के लिए केवल तीन प्रक्षेपण करने हैं. लॉन्च किए गए आठ नाविक उपग्रहों में से एक काम नहीं कर रहा है और कुछ अन्य में परमाणु घड़ी काम नहीं कर रही है. सोमनाथ ने कहा, हम अगले फरवरी में एक एनएवीआईसी उपग्रह लॉन्च करने के लिए भारत सरकार की अनुमति प्राप्त करने के लिए काम कर रहे हैं. हम पांच और एनएवीआईसी उपग्रहों का निर्माण कर रहे हैं. पुन: प्रयोज्य लॉन्च वाहन (आरएलवी) की स्थिति पर उन्होंने कहा कि 2022 के लिए योजना बनाई गई परीक्षण लैंडिंग संभव नहीं थी, क्योंकि इसके लिए आवश्यक हेलीकॉप्टर उपलब्ध नहीं था.
इस वर्ष भी अग्निकुल कॉस्मॉस ने श्रीहरिकोटा में इसरो की देखरेख में स्वयं के रॉकेट लॉन्च पैड का निर्माण किया. वर्ष 2022 में निजी रॉकेट स्टार्टअप स्काईरूट एयरोस्पेस ने भी श्रीहरिकोटा से अपने विक्रम साउंडिंग रॉकेट का सफलतापूर्वक परीक्षण किया.