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एक पत्थर की भी तकदीरसंवर सकती है शर्त ये है कि सलीकेसे तराशा जाए….

विभाष झा जी के फेसबुक वॉल से . एक पत्थर की भी तकदीरसंवर सकती है शर्त ये है कि सलीकेसे तराशा जाए  हमारे परमप्रियमित्र कांकेर निवासी काष्ठ शिल्पकार अजय मंडावी की कला साधना भी कमोबेश इसी अशआरके इर्द-गिर्द है. वे भी सलीके से तराशने का हुनर बखूबी जानते हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि वे पत्थर की जगहलकड़ी को तराशते हैं. आज उनकी सुदीर्घ साधना के लिए उन्हें राष्ट्रपति भवन में पद्मश्रीसम्मान से विभूषित किया गया. इस वर्ष डोमारसिंह और उषा बारले को भी पद्मश्री से सम्मानित किया गया. इन दोनों कलाकारों को भी अनेक बधाई और इनकी कला साधना को भी सादर अभिवादन है.   अजय भाई की सफलता भीहम सबके लिए प्रेरणा का विषय है. क्योंकि हमने उन्हें, वर्षों से अपनी साधना में तल्लीनहोकर बेजान लकड़ियों में अद्भुत शिल्प को उकेरते हुए देखा है. एक लम्बी साधना केबाद आज का यह दिन, अजय भाई सहित हम सबके लिए यादगार बन गया. क्योंकि आज ऐसा लगा किसाधना, चाहे कितने ही एकांत में की जाए, या सुदूर गांव में की जाए, उसका प्रतिफलतो मिलता ही है. अजय भाई, अपने आप में संघर्ष और धैर्य की मिसाल हैं, क्योंकि आपकीकला ही ऐसी है. एक-एक अक्षर को लड़की पर उकेरना, तराशना और फिर छोटी-बड़ी तख्ती परजमाकर पंक्तिबद्ध करना, किसी तपस्या से कम नहीं है. लेकिन आप चुप-चाप घंटों तकलकड़ी के बेडौल से टुकड़े को लेकर जब अपने औजारों से तराशते हैं, तो वह लकड़ी का टुकड़ाभी बोलने लगता है, और आपकी कला को भी बयान करता है. हमें गर्व है कि हम ऐसे कलाकारसे जुड़े हुए हैं. दिल्ली में सम्मान मिलने पर अब से थोड़ी देर पहले जब मैंने उन्हें फोन पर बधाई दी, तब भी वे सरलता सेइस सम्मान के प्रति कृतज्ञता जाहिर कर रहे थे. यही सरलता उनके सबसे अलग और विशेष होने की पहचान है. आज उन्हें सम्मान मिलने से निश्चित ही पूरा प्रदेश गौरवान्वित हुआहै. हमने कुछ वर्षों पहले उन पर एक छोटी फिल्म भी बनाई थी, जो यूट्यूब पर शेयर की गई थी. तब अजय भाई का साधना काल चल रहा था. अब उन्हें पद्मश्री सम्मान मिलने के बाद यहउनके लिए उपलब्धि का समय है. निश्चित ही यहाँ से तो यात्रा केवल शुरू हुई है, और अब आगे उन्हें उपलब्धि के अनेक सोपान तय करना है.

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